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मध्य भारतीय आर्यपरिवारके भाषा अर्धमागधी सन्स्कृत आउ आधुनिक भारतीयभाषाके बीचके एगो महत्वपूर्ण कड़ी हे । ई प्राचीनकालमे मगधके साहित्यिक आउ बोलचालके भाषा हल । जैनधरमके २४मा तीर्थङ्कर महावीर स्वामी इहे भाषामे अपने धर्मोपदेश कैलन हल । आगे चलके महावीरके शिष्यो महावीरके उपदेसके सङ्ग्रह अर्धमागधीमे कैलन जे आगम नामसे प्रसिद्ध भेल ।

अर्धमागधी प्राकृत
अर्धमागधी
ब्राह्मी: 𑀅𑀭𑁆𑀥𑀫𑀸𑀕𑀥𑀻
बोलेके  स्थान भारत
बिलुप्त पूरुबी हिन्दीमे बिकसित भेल
भाषापरिवार
हिन्द-यूरोपीय
भाषासङ्केत
आइएसओ ६३९-३ pka
लिङ्ग्विस्ट् लिस्ट् pka
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अर्थ

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हेमचन्द्र आचार्य अर्धमागधीके 'आर्ष प्राकृत' कहलन हे । अर्धमागधी शब्दके ढेर प्रकारसे अर्थ कैल जाहे :

  • (क) जे भाषा मगधके आधा भागमे बोलल जाहे,
  • (ख) जौनमे मागधीभाषाके कुछ लक्षण पाएल जा हे, जैसे पुल्लिङ्गमे प्रथमाके एकवचनमे एकारान्त रूपके होल (जैसे धम्मे) ।

साहित्य

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ई भाषामे विपुल जैन आउ लौकिक साहित्यके रचना कैल गेल । जैनधरमके २४मा तीर्थङ्कर महावीर स्वामी इहे भाषामे अपने धर्मोपदेश कैलन हल । आगे चलके महावीरके शिष्यो अर्धमागधीमे महावीरके उपदेसके सङ्ग्रह कैलन जे आगम नामसे प्रसिद्ध भेल । समय-समय पर जैन आगमके तीन वाचना भेल । अन्तिम वाचना महावीरनिर्वाणके १,००० बरिस बाद, ईसवी के छठा शताब्दीके आरम्भमे देवर्धिगणि क्षमाक्षमणके अधिनायकत्वमे वलभी (वला, काठियावाड़) मे भेल जखनि जैन आगम बर्तमान रूपमे लिपिबद्ध कैल गेल । इहे बीच जैन आगममे भाषा आउ बिषयके दृष्टिसे अनेक परिवर्तन भेल । ईसभ परिवर्तनके होवहुँ पर आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, उत्तराध्ययन, दशैवकालिक आदि जैन आगम पर्याप्त प्राचीन आउ महत्वपूर्ण हे ।

आगमके उत्तरकालीन जैन साहित्यके भाषाके अर्धमागधी न कहके प्राकृत कहल गेलहे । एकरासे एही सिद्ध होवहे जे ऊ खन्नि मगधके बाहरहुँ जैनधरमके प्रचार हो गेलहल ।

सन्दर्भ ग्रन्थ

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  • ए.एम. घाटगे : इण्ट्रोडक्शन् टु अर्धमागधी (१९४१);
  • बेचरदास जीवराज दोशी : प्राकृत व्याकरण (१९२५)

इहो देखी

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बाहरी कड़ी

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Archived 2015-02-14 at the वेबैक मशीन

सन्दर्भ

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