महाजनपद प्राचीनभारतमे राज्य वा प्रशासनिक इकाईके कहल जाहलै । ऊ सब गणतन्त्र वा राजतन्त्रके रूपमे शासित हल । उत्तर वैदिककालमे कुछ जनपदके उल्लेख भेटाहे । महाजनपदके सङ्ख्या १६ हे । ई सब १६ महाजनपदमे सबसे बड़ महाजनपद मगध (मगह) के कहल जाहे । [1]
इतिहास
editमहाजनपदके उदय
editढेर महाजनपद उत्तर वैदिककाल (ल॰ ११०० ई॰पू॰) से विकसित होवे लगल हल, जे मँ कुरु राजवंश, कोसल राजवंश, पाञ्चाल राजवंश, बिदेह राजवंश, मत्स्य राजवंश, चेदि राजवंश, प्राचीन मगध आउ गान्धार राजवंश सामिल हल । २०० से ६०० ई॰पू॰ के बीचे ई जनपद आउ प्राचीन राजवंश महाजनपदमे विकसित होवे लगल हल ।

८ठा सँ ६मा सताब्दी ई॰पू॰ क प्रारम्भिक भारतीय इतिहासमे एगो प्रमुख मोड़के रूपमे मानल जाहे । ई कालमे उत्तरभारतमे लोहाके व्यापक प्रयोग करल जाये लगल हल, जेकरासे खेतीके व्यवस्थित विकास होएल, जेकर परिणामस्वरूप सिन्धुघाटी सभ्यताके पतनके बाद प्राचीनभारत मँ दुसरबेर बड़ नगरके उदय होएल, जेकरा द्वितीय नगरीकरण कहहथ । द्वितीय नगरीकरणेसे महाजनपदके उदय होलै ।
श्रमण परम्पराके उदय
edit६ठा सताब्दी ई॰पू॰ सँ उत्तरभारत मँ श्रमण परम्पराके उदय होएल, जेकरामे जैनपन्थ, आजीविकपन्थ आउ अन्तिममे बौद्धपन्थ शामिल हल । उनखर साहित्यिक स्रोत ऊ खन्निके इतिहासके जानहुँला महत्वपूर्ण हथ । शुङ्ग साम्राज्यके उदय खन्नि १८५ ई॰पू॰, तक ई नास्तिक परम्परा तत्कालीन राज्यके राजनीति आउ समाजमे हावी बनल रहल ।
गणना आउ स्थिति
editई सब महाजनपद आजके उत्तरी अफगानिस्थानसे बिहार तक आउ हिन्दुकुशसे गोदावरीनदी तकमे फैल हल । दीर्घनिकायके महागोविन्द सुत्तमे भारतके आकृतिके वर्णन करैत ओकरा उत्तरमे आयताकार आउ दक्खिनमे त्रिभुजाकार माने एगो बैलगाड़ी नियन बतावल गेलहे ।
बौद्ध निकायमे भारतके पाँच भागमे वर्णित करल गेलहे - उत्तरापथ (पच्छिमोत्तर भाग), मध्यदेश, प्राची (पूर्वीभाग) दक्खिनापथ आउ अपरान्त (पच्छियाभाग) के उल्लेख भेटहे । एकरासे ई बातोके प्रमाण भेटहे जे भारतके भौगोलिक एकता ईसापूर्ब छठे शताब्दीसे परिकल्पित हे । एकर अतिरिक्त जैनग्रन्थ भगवतीसूत्र आउ सूत्र कृताङ्ग, पाणिनिके अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्ब सतमा शताब्दीमे रचित) आउ महाभारतमे उपलब्ध जनपद सूचीपर दृष्टिपात करी त पैवै जे उत्तरदन्ने हिमालयसे कन्याकुमारी तक आउ पच्छिदन्ने गान्धार प्रदेशसे लेके पूरुदन्ने असम तकके प्रदेस ई जनपदसे आच्छादित हल ।
कौटिल्य एगो चक्रवर्ती साम्राटके अन्तर्गत सम्पूर्ण भारतवर्षके राजनीतिक एकताके माध्यमसे एगो बृहत्तर सङ्गठित भारतके परिकल्पना करलन हल । ईसापूर्व छठा शताब्दीसे ईसापूर्ब दोसर शताब्दीतक प्रचलनमे रहल आहत सिक्काके वितरणसे अनुमान होवहे जे ईसापूर्ब चौथा सदीतक सम्पूर्णभारत मँ एके मुद्रा प्रचलित हल । एकरासे ऊ जुगमे भारतके एकताके साफ झलक लौकहे ।
ईसापूर्व छठा शताब्दीमे वैयाकरण पाणिनि २२ महाजनपदके उल्लेख करलन हे । ई मे सँ तीनगो - मगध, कोसल आउ बत्सके महत्वपूर्ण बतावल गेलहे ।
आरम्भिक बौद्ध आउ जैनग्रन्थमे एखनी बारेमे आउ जानकारी भेँटहे । यद्यपि कुल सोलह महाजनपदके नाम भेँटहे पर ई नामाकरण अलिगे-अलिगे ग्रन्थमे भिन्न-भिन्न हे । इतिहासकार ऐसन मानहथ जे ई अन्तर भिन्न-भिन्न समयपर राजनीतिक परिस्थितिके बदलेके चलते होएल हे । एकर अतिरिक्त ई सूचि सबके निर्माताके जनकारियो उनखर भौगोलिक स्थितिसे अलिगे हो सकहे । बौद्धग्रन्थ अङ्गुत्तरनिकाय, महावस्तुमे १६ महाजनपदके उल्लेख हे । जैनग्रन्थो मँ इनखर उल्लेख हे, जो ई प्रकरा हे –