Wp/mag/महाभारत

< Wp | mag
Wp > mag > महाभारत

महाभारत भारतके एगो प्रमुख काव्य ग्रन्थ हे, जे स्मृतिके इतिहास बर्गमे आवहे । एकरा भारतो कहव जाहे । ई काव्यग्रन्थ भारतके अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक आउ दार्शनिक ग्रन्थ हे ।[1] बिश्वके सबसे लम्बा ई साहित्यिक ग्रन्थ आउ महाकाव्य, हिन्दुधर्मके मुख्यतम ग्रन्थमेसे एक हे । ई ग्रन्थके हिन्दुधर्ममे पञ्चमवेद मानल जाहे ।[2] यद्यपि एकरा साहित्यके सबसे अनुपम कृतिमेसे एक मानल जाहे, किन्तु आझो ई ग्रन्थ प्रत्येक भारतीयला एगो अनुकरणीय स्रोत हे । ई कृति प्राचीनभारतके इतिहासके एगो गाथा हे । एकरेमे हिन्दुधरमके पवित्रतम ग्रन्थ भगवद्गीता सन्निहित हे । पूरा महाभारतमे लगभग १,१०,००० श्लोक हे[3], जे यूनानी काव्य इलियड् आउ ओडिसीसे परिमाणमे दस गुणा अधिक हे ।[4][5]

Wp/mag/महाभारत
महाभारतम्
महाभारत
कुरुक्षेत्र युद्धके पाण्डुलिपि चित्रण
जानकारी
धर्म हिन्दुधर्म
लेखक व्यास
भाषा संस्कृत
अवधि मुख्यतः तीसरा शताब्दी ईपू से चौथा शताब्दी ईस्वीमे सङ्कलित
अध्याय १८ पर्व
श्लोक/आयत २,००,०००

परम्परागत रूपसे महाभारतके रचनाके श्रेय वेदव्यासके देल जा है । एकर ऐतिहासिक वृद्धि आउ संरचनागत परतके जानेला ढेर प्रयास कैल गेलै हे । महाभारतके थोकके शायद तीसरा शताब्दी ईसा पूर्व आउ तीसरा शताब्दीके बीच सङ्कलित कैल गेलै हल, जेकरामे सबसे पुरान संरक्षित भाग ४०० ईसा पूर्वसे अधिक पुरान न हलै ।[6][7] महाकाव्यसे सम्बन्धित मूल घटना सम्भवतः ९ मा आउ ८ मा शताब्दी ईसा पूर्वके बीचके है ।[7] पाठ सम्भवतः प्रारम्भिक गुप्त राजवंश(c. ४ था शताब्दी सीई) द्वारा अपन अन्तिम रूपमे पहुँच गेलै ।[8][9] महाभारतके अनुसार कथाके २४,००० श्लोकके एक छोट संस्करणसे विस्तारित कैल जा है, जेकरा केवल भारत कहल जाहै ।[10] हिन्दु मान्यता, पौराणिक सन्दर्भ एवं स्वयं महाभारतके अनुसार ई काव्यके रचनाकार वेदव्यासजीके मानल जा है । ई काव्यके रचयिता वेदव्यास जी अपन ई अनुपम काव्यमे वेद, वेदाङ्ग आउ उपनिषद् के गुह्यतम रहस्यके निरुपण कैलन हे । एकर अतिरिक्त ई काव्यमे न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्रोके विस्तारसे वर्णन कैल गेलै हे ।[11]

महाभारतके सङ्क्षिप्त कथा

edit

कुरुवंशके उत्पत्ति आउ पाण्डुके राज्य अभिषेक

edit
File:Krishnaarjunmahabharata.jpg
कुरुक्षेत्रमे कृष्ण आउ अर्जुन

पुराणके अनुसार ब्रह्माजीसे अत्रि, अत्रिसे चन्द्रमा, चन्द्रमासे बुध आउ बुधसे इला-नन्दन पुरूरवाके जन्म होलै । उनकासे आयु, आयुसे राजा नहुष आउ नहुषसे ययाति उत्पन्न होलन । ययातिसे पुरू होलन । पूरूके वंशमे भरत आउ भरतके कुलमे राजा कुरु होलन । कुरुके वंशमे शान्तनु होलन । शान्तनुसे गङ्गानन्दन भीष्म उत्पन्न हुए। शान्तनुसे सत्यवतीके गर्भसे चित्राङ्गद आउ विचित्रवीर्य उत्पन्न होलन हल । चित्राङ्गद नामवाला गन्धर्वके द्वारा मारल गेलन आउ राजा विचित्रवीर्य राजयक्ष्मासे ग्रस्त हो स्वर्गवासी हो गेलन । तखनि सत्यवतीके आज्ञासे व्यासजी नियोगके द्वारा अम्बिकाके गर्भसे धृतराष्ट्र आउ अम्बालिकाके गर्भसे पाण्डुके उत्पन्न कैलन । धृतराष्ट्र गान्धारी द्वारा सौ पुत्रके जन्म देलन, जेकरामे दुर्योधन सबसे बड़ हल आउ पाण्डुके युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि पाँच पुत्र होलन । धृतराष्ट्र जन्मेसे नेत्रहीन हलन, अतः उनकर जगह पर पाण्डुके राजा बनावल गेलै । एक बेर वनमे आखेट खेलैत पाण्डुके बाणसे एक मैथुनरत मृगरुपधारी ऋषिके मृत्यु हो गेलै । ऊ ऋषिसे शापित हो कि "अखनी जखनियो तु मैथुनरत होबे त तोर मृत्यु हो जैतौ", पाण्डु अत्यन्त दुःखी होके अपन रानी सब सहित समस्त वासनाके त्याग करके आउ हस्तिनापुरमे धृतराष्ट्रके अपन प्रतिनिधि बनाके वनमे रहे लगलन ।

पाण्डवके जन्म आउ लाक्षागृह षडयन्त्र

edit
वार्णावत (वर्तमान बरनावा) स्थित लाक्षागृहके सुरक्षित अवशेष

राजा पाण्डुके कहेपर कुन्ती दुर्वासा ऋषिके देल मन्त्रसे यमराजके आमन्त्रित करके उनकासे युधिष्ठिर आउ कालान्तरमे वायुदेवसे भीम आउ इन्द्रसे अर्जुनके उत्पन्न कैलन । कुन्तियेसे ऊ मन्त्रके दीक्षा लेके माद्री अश्वनीकुमार सबसे नकुल आउ सहदेवके जन्म देलन । एक दिन राजा पाण्डु माद्रीके साथे वनमे सरिताके तटपर भ्रमण करैत पाण्डुके मन चञ्चल हो जायेसे मैथुनमे प्रवृत होलन जेकरासे शापवश उनकर मृत्यु हो गेलै । माद्री उनकर साथे सती हो गेलन किन्तु पुत्रके पालन-पोषणला कुन्ती हस्तिनापुर लौट आएल । कुन्ती विवाहसे पहिले सूर्यके अंशसे कर्णके जन्म देलन आउ लोकलाजके भयसे कर्णके गङ्गा नदीमे बहा देलन । धृतराष्ट्रके सारथी अधिरथ ओकरा बचाके ओकर पालन कैलकै । कर्णके रुचि युद्धकलामे हलै अतः द्रोणाचार्यके मना करेपर ऊ परशुरामसे शिक्षा प्राप्त कैलक । शकुनिके छलकपटसे दुर्योधन पाण्डवके बचपनमे ढेर बार मारेके प्रयत्न कैलक आउ युवावस्थोमे जखनि युधिष्ठिरके युवराज बना देल गेलै त लाक्षके बनल घर लाक्षाग्रहमे पाण्डवके भेजके उनका आगसे जलाबेके प्रयत्न कैलक, किन्तु विदुरके सहायताके कारण ऊ ओह जरैत गृहसे बाहरे निकल गेलन ।

द्रौपदी स्वयंवर

edit
File:DroptiSvayamvar1.jpg
अर्जुन द्वारा पाञ्चाल सभामे मत्स्य भेदन

पाण्डव ओहाँसे एकचक्रा नगरी गेलन आउ मुनिके वेष बनाके एक ब्राह्मणके घरमे निवास करे लगलन । फिर व्यासजीके कहेपर ऊ पांचाल राज्यमे गेलन जने द्रौपदीके स्वयंवर होवेवाला हलै । ओहाँ एकके बाद एक सब राजा एवं राजकुमार मछली पर निशाना साधेके प्रयास कैलकै किन्तु सफलता हाथ न लगलै । तत्पश्चात् अर्जुन तैलपात्रमे प्रतिबिम्बके देखैत एके बाणसे मत्स्यके भेद डाललन आउ द्रौपदी आगे बढ़के अर्जुनके गलामे वरमाला डाल देलन । माता कुन्तीके वचनानुसार पाँचो पाण्डव द्रौपदीके पत्नीरूपमे प्राप्त कैलन । द्रौपदीके स्वयंवरके समय दुर्योधनके साथे साथे द्रुपद, धृष्टद्युम्न एवं अनेक अन्य लोगके सन्देह हो गेलै हल कि ऊ पाँच ब्राह्मण पाण्डवे है । अतः उनकर परीक्षा लेबेला द्रुपद उनका अपन राजप्रासादमे बोलौलक । राजप्रासादमे द्रुपद एवं धृष्टद्युम्न पहिले राजकोषके दिखौलक किन्तु पाण्डव ओहाँ रखल रत्नाभूषण आउ रत्न-माणिक्य आदिमे कौनो प्रकारके रुचि न देखौलन । किन्तु जखनि ऊ शस्त्रागारमे गेलन त ओहाँ रखल अस्त्र-शस्त्रमे ओखनी सब बड़ी जादे रुचि देखौलन आउ अपनी पसन्दके शस्त्रके अपना भिरु रख लेलन । उनकर क्रिया-कलापसे द्रुपदके विश्वास हो गेल कि ई सब ब्राह्मणके रूपमे पाण्डवे हे ।

इन्द्रप्रस्थके स्थापना

edit
पाण्डव श्रीकृष्णके साथे खाण्डववनमे मय दानव आउ विश्वकर्मा द्वारा निर्मित इन्द्रप्रस्थ नगरके देखैत

द्रौपदी स्वयंवर से पूर्व विदुरके छोड़के सब पाण्डवके मृत समझे लगल आउ ई चलते धृतराष्ट्र दुर्योधनके युवराज बना देलन । गृहयुद्धके सङ्कटसे बचबेला युधिष्ठिर धृतराष्ट्र द्वारा देल खण्डहर स्वरुप खाण्डव वनके आधा राज्यके रूपमे स्वीकार कर लेलन । ओहाँ अर्जुन श्रीकृष्णके साथे मिलके समस्त देवता सबके युद्धमे परास्त करैत खाण्डववनके जरा देलन आउ इन्द्रके द्वारा कैल वृष्टिके अपन बाणके छत्राकार बान्धसे निवारण करके अग्नि देवके तृप्त कैलन । एकर फलस्वरुप अर्जुन अग्निदेवसे दिव्य गाण्डीव धनुष आउ उत्तम रथ आउ श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र प्राप्त कैलन । इन्द्र अपन पुत्र अर्जुनके वीरता देखके अतिप्रसन्न होलन । ऊ खाण्डवप्रस्थके वनके हटा देलन । ओकर उपरान्त पाण्डव श्रीकृष्णके साथे मय दानवके सहायतासे ऊ नगरके सौन्दर्यीकरण कैलन । ऊ नगर एक द्वितीय स्वर्गके समान हो गेलै । इन्द्रके कहे पर देव शिल्पी विश्वकर्मा आउ‌ मय दानव मिलके खाण्डव वनके इन्द्रपुरी जेत्ता भव्य नगरमे निर्मित कर देलन, जेकरा इन्द्रप्रस्थ नाम देल गेलै ।

द्रौपदीके अपमान आउ पाण्डवके वनवास

edit
File:Dicegame1.jpg
कुरुसभामे अपमानित होएल द्रौपदी

पाण्डव सम्पूर्ण दिशा पर विजय पावित प्रचुर सुवर्णराशिसे परिपूर्ण राजसूय यज्ञके अनुष्ठान कैलन । उनकर वैभव दुर्योधनला असह्य हो गेलै अतः शकुनि, कर्ण आउ दुर्योधन आदि युधिष्ठिरके साथे जुआमे प्रवृत्त होके ओकर भाई सब, द्रौपदी आउ उनकर राज्यके कपट द्यूतके द्वारा हँसैत-हँसैत जीत लेलकै आउ कुरु राज्यसभामे द्रौपदीके निर्वस्त्र करेके प्रयास कैलकै । परन्तु गान्धारी आके ऐसन होवेसे रोक देलन । धृतराष्ट्र एक बेर फिन दुर्योधनके प्रेरणा से उनका चौसर खेलेके आज्ञा देलन । ई तय होलै कि एके दाँवमे जेयो पक्ष हार जैतन, ऊ मृगचर्म धारण करके बारह वर्ष वनवास करतन आअ एक वर्ष अज्ञातवासमे रहतन । ऊ एको वर्षमे यदि उनका पहचान लेल गेलै त फिनसे बारह वर्षके वनवास भोगेके होतै । ई प्रकार पुनः जूआमे परास्त होके युधिष्ठिर अपन भाई सब सहित वनमे चल गेलन । ओहाँ बारहमा वर्ष बीते पर एक वर्षके अज्ञातवास ला ऊ विराटनगरमे गेलन । जखनि कौरव विराटके गौओके हरके ले जाए लगलन, तखनि उनका अर्जुन परास्त कैलन । तखनि कौरव पाण्डवके पहचान लेलन हल परन्तु उनकर अज्ञातवास तखनि तक पूरा हो चुकल हल । परन्तु १२ वर्षोके ज्ञात आउ एक वर्षके अज्ञातवास पूरा करेके बादो कौरव पाण्डवके उनका राज्य देवेसे मना कर देलक ।

शान्तिदूत श्रीकृष्ण, युद्ध आरम्भ आउ गीता-उपदेश

edit
File:Viraatrup.jpg
श्रीकृष्णके विराट रुप

धर्मराज युधिष्ठिर सात अक्षौहिणी सेनाके स्वामी होके कौरवके साथे युद्ध करेला तैयार होलन । पहिले भगवान् श्रीकृष्ण दुर्योधन भिजुन दूत बनके गेलन । ऊ इगारह अक्षौहिणी सेनाके स्वामी राजा दुर्योधनसे कहलन कि तु युधिष्ठिरके आधा राज्य दे दे या केवल पाँचे गाँव अर्पित करके युद्ध टाल दे ।

श्रीकृष्णके बात सुनके दुर्योधन पाण्डवके सुईके नोकके बराबर भूमियो देवेसे मना करके युद्ध करेके निशचय कैलक । ऐसन कहके ऊ भगवान् श्रीकृष्णके बन्दी बनावेला उद्यत हो गेल । तखनि राजसभामे भगवान् श्रीकृष्ण मायासे अपन परम दुर्धर्ष विश्वरूपके दर्शन कराके सबके भयभीत कर देलन । तदनन्तर ऊ युधिष्ठिर भिजुन लौट गेलन आअ बोललन कि दुर्योधनके साथे युद्ध करी । युधिष्ठिर आउ दुर्योधनके सेना कुरुक्षेत्रके मैदानमे जा डँटल । अपन विपक्षमे पितामह भीष्म आउ आचार्य द्रोण आदि गुरुजनके देखके अर्जुन युद्धसे विरत हो गेलन ।

तखनि भगवान् श्रीकृष्ण उनकासे कहलन -"पार्थ! भीष्म आदि गुरुजन शोकके योग्य न हथ । मनुष्यके शरीर विनाशशील है, किन्तु आत्माके कहियो नाश न होवे । ई आत्मे परब्रह्म है । 'हम ब्रह्म ही'- ई प्रकार तु ऊ आत्माके अस्तित्व समझ । कार्यके सिद्धि आउ असिद्धिमे समानभावसे रहके कर्मयोगके आश्रय लेके क्षात्रधर्मके पालन कर । ई प्रकार श्रीकृष्णके ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं कर्मयोगके बारेमे विस्तारसे कहेपर अर्जुन फिनसे रथारूढ़ होके युद्धला शङ्खध्वनि कैल ।

दुर्योधनके सेनामे सबसे पहिले पितामह भीष्म सेनापति होलन । पाण्डवके सेनापति धृष्टद्युम्न हलन । ई दोनोमे भारी युद्ध छिड़ गेल । भीष्मसहित कौरव पक्षके योद्धा ऊ युद्धमे पाण्डव-पक्षके सैनिक पर प्रहार करे लगल आउ शिखण्डी आदि पाण्डव-पक्षके वीर कौरव-सैनिक सबके अपने बाणके निशाना बनावे लगल । कौरव आउ पाण्डव-सेनाके ऊ युद्ध, देवासुर-सङ्ग्रामके समान जान पड़ऽहलै । आकाशमे खड़ा होके देखेवाला देवताके ऊ युद्ध बड़ आनन्ददायक प्रतीत हो रहलै हल । भीष्म दस दिन तक युद्ध करके पाण्डवके अधिकांश सेनाके अपन बाणसे मार गिरौलन ।

भीष्म आउ द्रोण वध

edit
File:Arrowbed.jpg
बाणके शय्या पर सुतल भीष्म

भीष्म दस दिन तक युद्ध करके पाण्डवके अधिकांश सेनाके अपन बाणसे मार गिरौलन । भीष्मके मृत्यु उनकर इच्छाके अधीन हल । श्रीकृष्णके सुझाव पर पाण्डव भीष्मेसे उनकर मृत्युके उपाय पूछलन । भीष्म कहलन कि पाण्डव शिखण्डीके सामने करके युद्ध लड़े । भीष्म ओकरा कन्ये मानऽहलन आउ ओकरा सामने पाके ऊ शस्त्र न चलाबेवाला हलन । आउ शिखण्डीके अपन पूर्व जन्मके अपमानके बदलो लेबेला हलै, ओकराला शिवजीसे वरदानो लेल कि भीष्मके मृत्युके कारण बनतै । १०मा दिनके युद्धमे अर्जुन शिखण्डीके आगे अपन रथ पर बैठौलन आउ शिखण्डीके सामने देखके भीष्म अपन धनुष त्याग देलन आउ अर्जुन अपन बाणवृष्टिसे उनका बाणके शय्या पर सुता देलन । तखनि आचार्य द्रोण सेनापतित्वके भार ग्रहण कैलन । फिरसे दोनो पक्षोमे बड़ भयंकर युद्ध होलै । मतस्यनरेश विराट आउ द्रुपद आदि राजा द्रोणरूपी समुद्रमे डूब गेलन हल । किन्तु जखनि पाण्डव छ्लसे द्रोणके ई विश्वास देया देलन कि अश्वत्थामा मार गेलै त आचार्य द्रोण निराश होके अस्त्र शस्त्र त्यागके उसके बाद योग समाधि लेके अपन शरीर त्याग देलन । ऐसन समयमे धृष्टद्युम्न योग समाधि लेके द्रोणके मस्तक तलवारसे काटके भूयाँ पर गिरा देलन ।

कर्ण आउ शल्य वध

edit
File:Arjunakaranbattle.jpg
कर्ण आउ अर्जुनके युद्ध

द्रोण वध के पश्चात् कर्ण कौरव सेनाके कर्णधार होलै । कर्ण आउ अर्जुनमे भाँति-भाँतिके अस्त्र-शस्त्रसे युक्त महाभयानक युद्ध होलै, जे देवासुर-सङ्ग्रामोके मात करेवाला हलै । कर्ण आउ अर्जुनके संग्राममे कर्ण अपन बाणसे शत्रु-पक्षके बड़ीमनी वीर सबके संहार कर देलकै । यद्यपि युद्ध गतिरोधपूर्ण होवैत हलै किन्तु कर्ण तखनि उलझ गेलै जखनि ओकर रथके एगो चक्का धरतीमे धँस गेलै । गुरु परशुरामके शापके कारण ऊ अपनाके दैवीय अस्त्रके प्रयोगोमे असमर्थ पाके रथके चक्काके निकालेला नीचे उतरऽहै । तखनि श्रीकृष्ण, अर्जुनके ओकरा द्वारा कैल अभिमन्यु वध, कुरु सभामे द्रोपदीके वेश्या आउ ओकर कर्ण वध करेके प्रतिज्ञा याद दियाके ओकरा मारेला कहऽहथिन, तखनि अर्जुन अञ्जलिकास्त्रसे कर्णके सिर धड़से अलग कर देलन । तदनन्तर राजा शल्य कौरव-सेनाके सेनापति होलन, किन्तु ऊ युद्धमे आधे दिन तक टिक सकलन । दुपहर होवित-होवैत राजा युधिष्ठिर उनका मार देलन ।

File:Duryodhna vadh.jpg
भीमसेन द्वारा दुर्योधनके वध

दुर्योधन वध आउ महाभारत युद्धके समाप्ति

edit

दुर्योधनके सब सेनाके मारे जाए पर अन्तमे ओकर भीमसेनके साथे गदा युद्ध होलै । भीम छ्लसे ओकर जाङ्घ पर प्रहार करके ओकरा मार देलन । एकर प्रतिशोध लेवेला अश्वत्थामा रात्रिमे पाण्डवके एक अक्षौहिणी सेना, द्रौपदीके पाँच पुत्र, उनकर पाञ्चालदेशीय बन्धु आउ धृष्टद्युम्नके सदा लागी सुता देलक । तखनि अर्जुन अश्वत्थामाके परास्त करके ओकर मस्तकके मणि निकाल लेलन । फिन अश्वत्थामा उत्तराके गर्भ पर ब्रह्मास्त्रके प्रयोग कैलक । ओकर गर्भ ओकर अस्त्रसे प्राय दग्ध हो गेलै हल, किन्तु भगवान् श्रीकृष्ण ओकरा पुनः जीवन-दान देलन । उत्तराके ओही गर्भस्थ शिशु आगे चलके राजा परीक्षितके नामसे विख्यात होलै । ई युद्धके अन्तमे कृतवर्मा, कृपाचार्य आउ अश्वत्थामा, तीन कौरवपक्षिय आउ पाँच पाण्डव, सात्यकि आउ श्रीकृष्ण, ई सात पाण्डवपक्षिय वीर जीवित बचलन । तत्पश्चात् युधिष्ठिर राजसिंहासन पर आसीन होलन ।

यदुकुलके संहार आउ पाण्डवके महाप्रस्थान

edit

ब्राह्मण आउ गान्धारीके शापके कारण यादवकुलके संहार हो गेलै । बलभद्रजी योगसे अपन शरीर त्यागके शेषनाग स्वरुप होके समुद्रमे चल गेलन ।

भगवान् कृष्णके सब प्रपौत्र एक दिन महामुनिके शक्ति देखेला एकके स्त्री बनाके मुनि भिजुन गेलन आउ पूछलन कि हे मुनिश्रेष्ठ! ई महिला गर्भसे है, हम्मनीके बताबी कि एकर गर्भसे केकर जन्म होतै? मुनिके ज्ञात होलै कि ई बालक उनकासे क्रिडा करैत एक पुरुषके महिला बनके उनका भिरु लैलक हे । मुनि सब कृष्णके प्रपौत्रके श्रापलन कि ई मानवके गर्भसे एक मूसल लिकलतै जेकरासे तोर वंशके अन्त होतै । कृष्णके प्रपौत्र ऊ मूसलके पत्थर पर रगड़के चूरा बनके नदीमे बहा देलन आउ ओकर नोकके फेक देलन । ऊ चूर्णसे उत्पन्न वृक्षके पत्ति सबसे सब कृष्णके प्रपौत्र मृत्युके प्राप्त कैलन । ई देखके श्रीकृष्णो एक पेड़के नीचे ध्यान लगाके बैठ गेलन । 'जरा' नामके एक व्याध (शिकारी) अपन बाणके नोक पर मूसलके नोक लगा देलक आअ भगवान् कृष्णके चरणकमलके मृग समझके ऊ बाणसे प्रहार कैलक । ऊ बाण द्वारा कृष्णके गोड़के चुम्बन उनकर परमधाम गमनके कारण बनल । प्रभु अपन सम्पूर्ण शरीर साथे गोलोक प्रस्थान कैलन ।[12] एकर बाद समुद्र द्वारकापुरीके अपन जलमे डुबा देलक । तदनन्तर द्वारकासे लौटैत अर्जुनके मुखसे यादवके संहारके समाचार सुनके युधिष्ठिर संसारके अनित्यताके विचार करके परीक्षितके राजासन पर बैठौलन आउ द्रौपदी एवं भाई सब संगे ले हिमालय दने महाप्रस्थानके पथ पर अग्रसर होलन । ऊ महापथमे युधिष्ठिरके छोड़के सब एक-एक करके गिर पड़लन । अन्तमे युधिष्ठिर इन्द्रके रथ पर आरूढ़ होके (दिव्य रूपधारी) भाई सब सहित स्वर्ग चल गेलन ।

एकरो देखी

edit

सन्दर्भ

edit
  1. "How did the 'Ramayana' and 'Mahabharata' come to be (and what has 'dharma' got to do with it)?". मूल से 16 दिसम्बर 2018 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 दिसम्बर 2018.
  2. सिंह, राजेन्द्र प्रताप (०४). १००० महाभारत प्रश्नोत्तरी (हिन्दी मे). दिल्ली: सत्साहित्य प्रकाशन. पप॰ १६४. आईएसबीएन: 81-7721-041-6. मूल (सजिल्द) से 13 अगस्त 2010 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ मई २०१०. महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। यह ग्रंथ हमारे देश के मन-प्राण में बसा हुआ है। यह भारत की राष्ट्रीय गाथा है। इस ग्रन्थ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श स्त्री-पुरुषों के चरित्रों से हमारे देश के जन-जीवन को यह प्रभावित करता रहा है। नामालूम प्राचल |armies= के उपेक्षा कैल गेल (सहायता); नामालूम प्राचल |month= के उपेक्षा कैल गेल (सहायता); |access-date= में 2 स्थान पर line feed character (सहायता); |access-date=, |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँची (सहायता)Wp/mag/सीएस१ रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  3. "हिन्दुपिडिया-महाभारत". मूल से 5 जनवरी 2010 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अप्रैल 2010.
  4. स्पोडेक, होवार्ड्. रिचर्ड मेसन. विश्वा का इतिहास.पिअर्सन एजुकेशन:२००६, नयु जर्सी. २२४, 0-13-177318-6
  5. अमर्तय सेन, द आर्ग्युमेनटिव इण्डियन . रायटिंग्स आन इण्डियन कल्चर, हिस्टरी एण्ड आईडेन्टिटी, लन्दन: पेन्गुइन बुकस,2005
  6. Austin, Christopher R. (2019). Pradyumna: Lover, Magician, and Son of the Avatara. Oxford University Press. प॰ 21. आई॰ऍस॰बी॰एन॰ 978-0-19-005411-3.
  7. 1 2 Brockington (1998, p. 26)
  8. "How did the 'Ramayana' and 'Mahabharata' come to be (and what has 'dharma' got to do with it)?". मूल से 16 दिसम्बर 2018 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 दिसम्बर 2018.
  9. Van Buitenen; The Mahabharata – १; The Book of the Beginning. Introduction (Authorship and Date)
  10. bhārata means the progeny of Bharata, the legendary Jain king who is claimed to have founded the Bhāratavarsha kingdom.
  11. महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर, आदि पर्व अध्याय १, श्लोक ६२-७०
  12. भागवतमे श्रीसूकदेवजी ई आउ सम्पूर्ण कथा राजा परीक्षितके सुनैलन हल ।