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बौद्धधरम एगो अनिश्वरवादी धरम हे । ऐतिहासिकरुपमे ई धरम शाक्यमुनि बुद्ध (गौतमबुद्ध) आउ उनखर अनुयायीसभके शिक्षामे आधारित धरम हे। बौद्धधरमके परम्परामे त गौतमबुद्धके बर्तमान कल्पके चौथा सम्यक् सम्बुद्धके रूपमे मानल जाहे । ऊ छठासे पचमा शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित हलन । उनखर स्वर्गवास होएलके अगिला पाँच शताब्दीमे बौद्धधरम पूरा भारतीय उपमहाद्वीपमे फैलल, आउ अगिला दु सहस्र बरसमे मध्य, पूर्बी आउ दक्खिन-पूर्बी जम्बुमहाद्वीपोमे फैलल । बौद्धधरममे तीनगो मुख्य सङ्घ हे: थेरवाद, महायान आउ बज्रयान । बौद्धधरमे पैँतीस करोड़से अधिक जन मानैतहथ आउ ई बिश्वके चौथा सभसे पैगधरमके रूपमे रहल हे ।

बौद्धधम्म

बर्गके भाग

बौद्धधरमके इतिहास
· बौद्धधरमके कालक्रम
· बौद्धसन्स्कृति
बुनियादी मनोभाव
चार आर्यसत्य ·
आर्य अष्टाङ्गमार्ग ·
निर्वाण · त्रिरत्न · पञ्चशील
मुख्य व्यक्ति
गौतमबुद्ध · बोधिसत्व
क्षेत्रानुसार बौद्धधरम
दक्खिनपूरुबी बौद्धधरम
· चीनी बौद्धधरम
· तिब्बती बौद्धधरम ·
पच्छिमी बौद्धधरम
बौद्ध सम्प्रदाय
थेरावाद · महायान
· बज्रयान
बौद्ध साहित्य
त्रिपतक · पालि ग्रन्थसङ्ग्रह
· बिनय
· पालिसूत्र · महायानसूत्र
· अभिधर्म · बौद्धतन्त्र

बुद्ध अर्थात् बोधिप्राप्त वा अन्तिम सत्यके साक्षात्कार करेवाला महामानव मानल जाहथ । जे व्यक्ति अपन प्रयाससे बिना गुरु बुद्धत्व प्राप्त करहे ऊ दोसर प्राणीसभके दु:खनिरोधक मार्गदर्शन करहे उनखा सम्यक् सम्बुद्ध कहल जाहे । कहल जाहे जे गौतम बुद्धके पहिले अनेक सम्यक् सम्बुद्धसभ उत्पन्न हो गेलनहे आउ भविष्योमे अनेकौँ सम्यक् सम्बुद्धसभ उत्पन्न होके दु:खनिरोधके सनातन शिक्षा देत । बौद्धधरमके अन्तिम लक्ष्य हे, दुःखसे सदाला मुक्ति । बुद्ध दु:खमुक्तिसे सरोकार न रखैत दार्शनिक प्रश्नसभके महत्व न दे हलन । ऊ कहैत हलन , "भिक्षुसभ हम खाली एगो बात मात्र सिखाएब - दु:ख आउ दु:खनिरोधके उपाय ।" शीलके जगमे रहि ध्यानद्वारा समाधि पुष्ट करैत पज्ञा उत्पन्न करावहीँ सकैमे दु:खमुक्तिके अवस्था निर्वाणके साक्षात्कार कैल जा सकहे से उनखर मूलशिक्षा हे ।

शब्द

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बौद्धधरम एगो भारतीय धरम [1] वा दर्शन हे । बुद्ध ("जागृत व्यक्ति") एगो श्रमण हलन जे दक्खिन एसियामे छठा वा पचमा शताब्दी ईसा पूर्वमे रहहलन ।[2][3]

बौद्धधरमके अनुयायी, जिनखा बौद्ध कहल जाहे, प्राचीनभारतमे अपनाके शाक्य -एस वा शाक्यभिक्षु कहहलन । [4] [5] बौद्ध विद्वान डोनाल्ड एस लोपेज के दावा हे कि ऊहो बौद्ध शब्दके प्रयोग कैलक हल, [6] हालाँकि विद्वान रिचर्ड कोहेन के दावा हे कि ऊ शब्दके प्रयोग खाली बाहरी लोग द्वारा बौद्धके वर्णन करेला कैल गेलहल । [7]

 
थाईलेण्डमे एगो भिक्षु, बुद्धके प्रतिमाके नमस्कार करैत
 
शाक्यमुनि बुद्ध, अभय मुद्रामे (हाङ्गकाङ्ग)

गौतमबुद्ध

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बुद्धके बास्तविक नाम सिद्धार्थ हल । उनखर जनम कपिलबस्तु (शाक्य महाजनपदके राजधानी) के लगले लुम्बिनी (बर्तमानमे दक्खिनमध्य नेपाल) मे होएल हल । ई स्थानपर तीसरा शताब्दी ईसा पूर्वमे सम्राट अशोक बुद्धके स्मृतिमे एगो स्तम्भ बनेलेहल ।

सम्प्रदाय

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बौद्धधम्ममे सङ्घके बड़ स्थान हे । ई धरममे बुद्ध, धम्म आउ सङ्घके 'त्रिरत्न' कहल जाहे । सङ्घके नियमके बारेमे गौतमबुद्ध कहलन हल कि छोट नियम भिक्षुगण परिवर्तन कर सकहे । उनखर महापरिनिर्वाण पश्चात् सङ्घके आकारमे व्यापक बृद्धि भेल । ई वृद्धिके पश्चात् बिभिन्न क्षेत्र, संस्कृति, सामाजिक अवस्था, दीक्षा, आदिके आधार पर भिन्न लोग बुद्धधम्मसे आबद्ध भेल आउ सङ्घके नियम धीरे-धीरे परिवर्तन होवे लगल । साथेमे अङ्गुत्तर निकायके कालाम सुत्तमे बुद्ध अपन अनुभवके आधार पर धम्म पालन करेके स्वतन्त्रता देलन हे । अतः विनयके नियममे परिमार्जन/परिवर्तन, स्थानीय सांस्कृतिक/भाषिक पक्ष, व्यक्तिगत धम्मके स्वतन्त्रता, धम्मके निश्चित पक्षमे जादे वा कम जोड़ आदि कारणसे बुद्धधम्ममे बिभिन्न सम्प्रदाय आउ सङ्घमे परिमार्जित भेल । बर्तमाने इसभ सङ्घमे प्रमुख सम्प्रदाय वा पन्थ थेरवाद, महायान आउ वज्रयान हे । भारतमे बौद्धधम्मके नवयान सम्प्रदाय हे जे भीमराव आम्बेडकर द्वारा निर्मित हे ।

थेरवाद

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महायान

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वज्रयान

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नवयान

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  • डॉ भीमराव आम्बेडकरके सिद्धान्तके अनुसरण
  • बुद्धके मूल शिक्षाके अनुसरण
  • महायान, वज्रयान, थेरवादसे भिन्न सिद्धान्त
  • भारतमे (मुख्यतः महाराष्ट्रमे) प्रभाव

प्रमुख तीर्थ

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भगवान् बुद्धके अनुयायीला बिश्वभरमे पाँच मुख्य तीर्थस्थल मानल जाहे :

लुम्बिनी

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माया देवी मन्दिर, लुम्बिनी, नेपाल

ई स्थान नेपालके तराईमे नौतनवाँ रेलस्थानकसे २५ किलोमीटर आउ गोरखपुर-गोण्डा लाइनके सिद्धार्थनगर स्थानकसे लगभग १२ किलोमीटर दूर हे । अखनि त सिद्धार्थनगरसे लुन्बिनी तक पक्का सड़को बन गेलहे । ईसा पूर्व ५६३ मे राजकुमार सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) के जनम हियेँ भेलहल । हालाँकि हियाँके बुद्धके समयके अधिकतर प्राचीन विहार नष्ट हो गेलहे । खाली सम्राट अशोकके एगो स्तम्भ अवशेषके रूपमे ई बातके गवाही दे हे कि भगवान् बुद्धके जनम हियाँ भेलहल । ई स्तम्भके अतिरिक्त एगो समाधि स्तूपमे बुद्धके एगो मूर्ति हे । नेपाल सरकारो हियाँ पर दु स्तूप आउ बनवैलक हे ।

बोधगया

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महाबोधि विहार, बोधगया

लगभग छौ बरिस तक जगह-जगह आउ बिभिन्न गुरु भिजुन भटकेके बादो बुद्धके कनहुँ परम ज्ञान न भेटल । एकरा बाद ऊ गया पहुँचलन । अन्तिममे ऊ प्रण लेलन कि जखनि तक असली ज्ञान उपलब्ध न होत, ऊ पिपल पेड़के नीचेसे न उठतन, चाहे उनखर प्राणे काहे न निकल जाये । एकरा बाद लगभग छौ बरिस तक दिनरात एक पीपल वृक्षके नीचे भूखले-पियासले तप कैलन । अन्तिममे उनखा परम ज्ञान वा बुद्धत्व उपलब्ध भेल । जौन पिपल पेड़के नीचे ऊ बैठलन, ओकरा बोधिवृक्ष अर्थात् 'ज्ञानके वृक्ष' कहल जाहे । हुँमे गयाके बोधगयाके नामसे जानल जाहे ।

सारनाथ

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धामेक स्तूप भिजुन प्राचीण बौद्धमठ, सारनाथ, उत्तरप्रदेस, भारत

बनारस छावनी स्थीनकसे छौ किलोमीटर, बनारस-नगर स्थानकसे साढ़े तीन किलोमीटर आउ सड़कमार्गसे सारनाथ चार किलोमीटर दूर पड़हे । ई पूर्वोत्तर रेलके स्थानक हे आउ बनारससे हियाँ जायेला सवारी ताङ्गा आउ रिक्शा आदि भेटहे । सारनाथमे बौद्ध-धर्मशाला हे । ई बौद्ध तीर्थ हे । लाखोसभके सङ्ख्यामे बौद्ध अनुयायी आउ बौद्धधम्ममे रुचि रखेवाला लोग प्रत्येक बरिस हियाँ पहुँचहथ । बौद्ध अनुयायीके हियाँ प्रत्येक बरिस आवेके सबसे बड़ कारण ई हे कि भगवान् बुद्ध अपन प्रथम उपदेश हियेँ देलन हल । सदियोसभ पहिले एही स्थानसे ऊ धर्म-चक्र-प्रवर्तन प्रारम्भ कैलन हल । बौद्ध अनुयायी सारनाथके मट्टी, पत्थर आउ कङ्करोको पवित्र मानहथ । सारनाथके दर्शनीय बस्तुमे अशोकके चतुर्मुख सिंह स्तम्भ, भगवान् बुद्धके प्राचीन मन्दिर, धामेक स्तूप, चौखण्डी स्तूप, आदि शामिल हे ।

कुशीनगर

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महापरिनिर्वाण स्तूप, कुशीनगर, उत्तरप्रदेश, भारत

कुशीनगर बौद्ध अनुयायीके बड्डी बड़ पवित्र तीर्थस्थल हे । भगवान् बुद्धके कुशियेनगरमे महापरिनिर्वाणके प्राप्ति भेल । कुशीनगर भिरु हिरन्यवती नदी समीपे बुद्ध अपन अन्तिम साँस लेलन । रम्भर स्तूप भिजुन उनखा अन्तिम संस्कार कैल गेल । उत्तरप्रदेसके मण्डल गोरखपुरसे ५५ किलोमीटर दूर कुशीनगर बौद्ध अनुयायीके अतिरिक्त पर्यटन प्रेमियोला बिसेस आकर्षणके केन्द्र हे । ८० बरिसके आयुमे शरीर त्यागेसे पहिले भारी सङ्ख्यामे लोग बुद्धसे मिले पहुँचलन । मानल जाहे कि लगभग २० वर्षीय ब्राह्मण सुभद्र बुद्धके वचनसे प्रभावित होके सङ्घसे जुड़ेके इच्छा जतौलक । मानल जाहे कि सुभद्र अन्तिम भिक्षु हल जेकरा बुद्ध दीक्षित कैलन ।

दीक्षाभूमी

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दीक्षाभूमि, नागपुर, महाराष्ट्र, भारत

दीक्षाभूमि, नागपुर महाराष्ट्र राज्यके नागपुर नगरमे स्थित पवित्र आउ महत्त्वपूर्ण बौद्ध तीर्थस्थल हे । हियेँ पर डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर १४ अक्टूबर, १९५६ के विजयादशमी / दशहरा के दिन पहिले स्वयं अपन पत्नी डॉ सविता आम्बेडकरके साथे बौद्धधम्मके दीक्षा लेलन आउ फेर अपन ५ लाख हिन्दु दलित समर्थकके बौद्धधम्मके दीक्षा देलन हल । १९५६ से आज तक प्रत्येक बरिस हियाँ देस-बिदेससे २० से २५ लाख बुद्ध आउ बाबासाहेबके बौद्ध अनुयायी दर्शन करेला आवहे । ई पवित्र आउ महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थलके महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘अ’वर्ग पर्यटन आउ तीर्थस्थलके दर्जा देल गेलहे ।

सन्दर्भ

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  1. Jonathan H. X. Lee; Kathleen M. Nadeau (2011). Encyclopedia of Asian American Folklore and Folklife. ABC-CLIO. प॰ 504. आई॰ऍस॰बी॰एन॰ 978-0-313-35066-5., Quote: "The three other major Indian religions – Buddhism, Jainism and Sikhism – originated in India as an alternative to Brahmanic/Hindu philosophy"; Jan Gonda (1987), Indian Religions: An Overview – Buddhism and Jainism, Encyclopedia of Religion, 2nd Edition, Volume 7, Editor: Lindsay Jones, Macmillan Reference, ISBN 0-02-865740-3, p. 4428; K. T. S. Sarao; Jefferey Long (2017). Encyclopedia of Indian Religions: Buddhism and Jainism. Springer Netherlands. आई॰ऍस॰बी॰एन॰ 978-94-024-0851-5., Quote: "Buddhism and Jainism, two religions which, together with Hinduism, constitute the three pillars of Indic religious tradition in its classical formulation."
  2. Gethin, Rupert (2010). The foundations of Buddhism. An OPUS book (1. publ. paperback, 17th pr संस्करण). Oxford: Oxford Univ. Press. आई॰ऍस॰बी॰एन॰ 978-0-19-289223-2.
  3. Bronkhorst, Johannes (10 July 2016). "Buddhist Teaching in India". en.wikipedia.org. मूल से 11 January 2023 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-11-10.
  4. Beyond Enlightenment: Buddhism, Religion, Modernity by Richard Cohen. Routledge 1999. ISBN 0-415-54444-0. p. 33. "Donors adopted Sakyamuni Buddha's family name to assert their legitimacy as his heirs, both institutionally and ideologically. To take the name of Sakya was to define oneself by one's affiliation with the buddha, somewhat like calling oneself a Buddhist today.
  5. Sakya or Buddhist Origins by Caroline Rhys Davids (London: Kegan Paul, Trench, Trubner, 1931) p. 1. "Put away the word "Buddhism" and think of your subject as "Sakya." This will at once place you for your perspective at a true point. You are now concerned to learn less about 'Buddha' and 'Buddhism,' and more about him whom India has ever known as Sakya-muni, and about his men who, as their records admit, were spoken of as the Sakya-sons, or men of the Sakyas."
  6. Lopez, Donald S. (1995). Curators of the Buddha, University of Chicago Press. p. 7
  7. Beyond Enlightenment: Buddhism, Religion, Modernity by Richard Cohen. Routledge 1999. ISBN 0-415-54444-0. p. 33. Bauddha is "a secondary derivative of buddha, in which the vowel's lengthening indicates connection or relation. Things that are bauddha pertain to the buddha, just as things Saiva related to Siva and things Vaisnava belong to Visnu. ... baudda can be both adjectival and nominal; it can be used for doctrines spoken by the buddha, objects enjoyed by him, texts attributed to him, as well as individuals, communities, and societies that offer him reverence or accept ideologies certified through his name. Strictly speaking, Sakya is preferable to bauddha since the latter is not attested at Ajanta. In fact, as a collective noun, bauddha is an outsider's term. The bauddha did not call themselves this in India, though they did sometimes use the word adjectivally (e.g., as a possessive, the buddha's)."