सन्स्कृति कोईयो समाजमे गहराई तक व्याप्त गुणके समग्रस्वरूपके नाम हे, जे ऊ समाजके सोचे, बिचारे, काज करेके स्वरूपमे अन्तर्निहित होवहे। ई ‘कृ’ (करना) धातुसे बनल हे। ई धातुसे तीन शब्द बनहे ‘प्रकृति’ के मूल स्थिति, ई सन्स्कृत हो जाहे आउ जखनी ई बिगड़ जाहे त ‘विकृत’ हो जाता हे। अङ्ग्रेजीमे सन्स्कृतिला 'कल्चर्' सब्द प्रयोग करल जाहे जे लातिनीभासाके ‘कल्ट् या कल्टस्’ से लेल गेल हे, जेकर अर्थ हे जोतना, बिकसित करना या परिष्कृत करना आउ पूजा करना। सङ्क्षेपमे, कोईयो बस्तुके इहाँ तक सन्स्कारित आउ परिष्कृत करना कि एकर अन्तिम उत्पाद हमनीके प्रशन्सा आउ सम्मान प्राप्त कर सके। ई ठीक उहे प्रकार हे जैसे सन्स्कृतभासाके शब्द ‘सन्स्कृति’।