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आर्य प्रवास सिद्धान्त हिन्द-आर्यजनके भारतीय उपमहाद्वीपके बाहिरेसे एक मूलके सिद्धान्तके आसपासके परिदृश्यों पर चर्चा करहथ, एगो हिन्द-यूरोपीय भाषापरिबार (हिन्द-आर्यभाषा) बोलेवाला एगो जातीय जातीय भाषासमूह, जे उत्तरभारतके प्रमुखभाषा हे । भारतीय उपमहाद्वीपके बाहिरे हिन्द-आर्य मूलके प्रस्तावक आमतौर पर मध्य एसियासे लगभग २००० ईसा पूर्ब शुरू होवेवाला क्षेत्र आउ अनातोलिया (प्राचीन मितानी) मे आवेवाला प्रवासीके लेटप्पनकालके दौरान एक धीमा गतिसे प्रसारके रूपमे मानहथ,[2] जेकर कारण एगो भाषा बदलाव होएल ।

हिन्द-यूरोपीय प्रवासके योजना, जेकरासे हिन्द-आर्य प्रवास, ca से एहो भाग हे । कुरगन् परिकल्पनाके अनुसार ४००० से १००० ईसा पूर्ब:
* मेजेण्टाक्षेत्र ग्रहण कैल गेल उर्मिअत (समारा सन्स्कृति, श्रेनी स्टॉग् सन्स्कृति आउ बादके यमना सन्स्कृति) से मेल खाहे ।
* लालक्षेत्र ऊ क्षेत्रसे मेल खाहे जे काजनी भारत-यूरोपीय बोलेवाला लोगद्वारा सीए तक बसावल गेलहे । २५०० ईपू
* नारङ्गीक्षेत्र १००० ईसा पूर्बसे मेल खाहे । स्रोत: क्रिस्टोफर् आई । बेकविथ् (२००९), एम्पायर्स् ऑफ् द सिल्क् रोड्, ऑक्सफोर्ड् यूनिवर्सिटी प्रेस्, पी .30।[1]

एकरो देखी

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सन्दर्भ

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  1. Beckwith 2009, पृ॰ 30.
  2. "Harappan and Aryan roots of Rig Veda". मूलसे 22 सितम्बर 2019 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 सितम्बर 2019.