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ब्राह्मी (/ˈbrɑːmi/; IAST: Brāhmī) दक्षिण ने बिचलि एशिया री हैंगाउ पुराणी आबुगीदा लिपियां मूं आवे। आज, अधिक्तर दक्षिण ने पूरब-दक्षिण एशिया ब्राह्मी ऊं निकळयोड़ी लिपियां काम में लेवे। ऐणे अलावा, तिबत्ती लिपि, तोचारियन लिपि ने मंगोलिया री फाग्स्पा लिपि ब्राह्मी ऊं निकळयोड़ी है।

ब्राह्मी रा हैंगाउ जाणयोड़ा उधारण अशोक सत्म्भ माते लादे, जिका कि २५०-२३२ बरस ईसापुर्व रे कने बणयोड़ा है। १८३७ में जेम्स प्रिन्सेप लिपि ने बांचणो तरिको काडया। [1] ब्राह्मी री जड़ ने ले ने निरि वाद-विवाद हाल भी वै, जिमे कीं लोग कैवे कि भारत री सिंधू घाटी सभ्यता री लिपि ऊं संबंध है ने कीं लोग कैवे की ब्राह्मी री जड़ सामी लिपियां में है। जिण समय ब्राह्मी चालति ही, खरोष्ठी लिपि भी काम आवति ही, पण खरोष्ठी आगे कोनि बड्डि।

ब्राह्मी रा अधिकतर लादयोड़ा पाना डावा ऊं जीवणे लिखयोड़ा है, पण कीं उधारण जीवणा ऊं डावा लिखयोड़ा भी लादया है।

ब्राह्मी नाम री कइ कांहणियां है। थोङा जैन सूत्र (व्याख्य प्रज्ञापति सूत्र, समवायांग सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र) में लिखयोङो है कि महावीर स्वामी रे जनम रे पहली १८ लिपियां सिखाया करता, जमूं हैंगाउ पहली ब्राह्मी ही। पण ऐणे पछे रा दो सूत्र में ब्राह्मी रो नाम कोनि है (कल्प सूत्र, विशेष आवश्यक)। कांहणी में औ लिखयोङो है कि ऋषभदेवजी खुदरी बेटी ब्राह्मी ने १८ लिपियां सिखाया हा, ने ब्राह्मी दूजा ने सिखावता समय ब्राह्मी लिपि माते जोर राखी ही, जिण वजय सूं ब्राह्मी लिपि रो नाम इज ब्राह्मी पङ ग्यो।[2]

जड़ां

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हाल तक ब्राह्मी में लिखयोड़ी चीजां में हैंगाउ पुराणी छटि सदी ईसा पूर्व में लिखयोड़ी है, जिकि की तमिऴ नाडु ने श्रीलंका में लादी है। वैग्यानिक समाझ में हाल वाद-विवाद चाल रियो है कि ब्राह्मी रो जड़ भारत में है कि बिचलोड़ा एशिया में है।

भारतीय जड़

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भारतीय जड़ मानण वाळा में भी कीं लोग माने कि सिन्धु घाटी सभ्यता री लिपि ऊं जोड़ है, पण दूजा औ माने कि दोइ लिपियां रे बीचे कोइ सम्बन्ध कोनि।

विदेशी जड़

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कीं लोग औ माने कि ब्राह्मी लिपि भारत ऊं बारे बण ने पछे भारत पूगी। वै उने फनीशियन लिपि ने आरमेइक लिपि ऊं जुड़योड़ी माने।

ब्राह्मी री संतति

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ब्राह्मी लिपि ऊं निरि दूजी लिपियां बणी। ऐणमे कीं उधारण हैं:

देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिऴ लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, ख़मेर, जावानीज़, खुदाबादी लिपि आदि।

व्यंजन

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देव बांग्ला गुर गुज उडिया तमिऴ तेलुगु कन्न मल सिंहली तिब्बती थाई बर्मेली ख्मेर लाओ
က
 
   
   
 
  ​ඣ​    
ဉ/ည
 
   
   
     
 
 
 
     
                       
 
 
   
র/ৰ
                 
  ਲ਼        
                   
 
ਸ਼  
   
 

स्वर

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देवनागरी बांग्ला गुरुमुखी गुजराती ओडिया तमिऴ तेलुगु कन्नड मलयालम सिंहल तिब्बती बर्मी
                က
का কা ਕਾ કા କା கா కా ಕಾ കാ කා     အာ ကာ
                                    කැ        
                                    කෑ        
कि কি ਕਿ કિ କି கி కి ಕಿ കി කි ཨི ཀི ကိ
की কী ਕੀ કી କୀ கீ కీ ಕೀ കീ කී     ကီ
कु কু ਕੁ કુ କୁ கு కు ಕು കു කු ཨུ ཀུ ကု
कू কূ ਕੂ કૂ କୂ கூ కూ ಕೂ കൂ කූ     ကူ
कॆ                 கெ కె ಕೆ കെ කෙ     ကေ
के কে ਕੇ કે କେ கே కే ಕೇ കേ කේ ཨེ ཀེ အေး ကေး
कै কৈ ਕੈ કૈ କୈ கை కై ಕೈ കൈ කෛ        
कॊ                 கொ కొ ಕೊ കൊ කො     ကော
को কো ਕੋ કો କୋ கோ కో ಕೋ കോ කෝ ཨོ ཀོ    
कौ কৌ ਕੌ કૌ କୌ கௌ కౌ ಕೌ കൗ කෞ     ကော်
कृ কৃ     કૃ କୃ     కృ ಕೃ കൃ කෘ ကၖ
कॄ কৄ     કૄ               කෲ     ကၗ
कॢ কৢ               కౄ   ക്ഌ (ඏ)[3]       ကၘ
कॣ কৣ                   ക്ൡ (ඐ)       ကၙ

अंक

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अंक देवनागरी बांग्ला गुरुमुखी गुजराती ओडिया तमिऴ तेलुगु कन्नड मलयालम तिब्बती बर्मी
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  1. सांची रे बौध स्मारक रे बारे में और ब्यौरां, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, १९८९.
  2. Nagrajji, Acharya Shri (2003), Āgama Aura Tripiṭaka, Eka Anuśilana: Language and literature, New Delhi: Concept Publishing, pp. 223–224
  3. केवल प्राचीन काल में लिखयोड़ी सिंहाली