ओ३म् (ॐ) वा ओंकार परमात्मा, ईश्वर, ऊ एगोके मुखसे निकलेवाला पहिलका शब्द हे जे ई सन्सारके रचनामे प्राण डाललक । ॐ, ओं के तीन मात्रा हे - अकार, उकार, आउ मकार जे प्रकृतिके तीन गुणके बतावहे । अकार सतोगुणके, उकार रजोगुणके तथा मकार तमोगुणके प्रतीक हे । ॐ के ऊपर बिन्दु तीनो गुणसे परे वा तीनोमे समानताके निर्गुणताके प्रतीक हे । ॐ के उच्चारणके साधक जखनि ई जानके जाप करहथ त ऊ सान्सारिक गुणमे दोष देखित निर्गुणताके शीघ्रे प्राप्त होवहे । ॐ के जाप, सही उच्चारणसे शारीरिक ऊर्जाके आध्यात्मिक ऊर्जासे, आउ ऊ आध्यात्मिक ऊर्जाके ब्रह्माण्ड ऊर्जासे जोड़ जीव अस्तित्वके परम आनन्दके प्राप्त कर सकहे । बैदिक शास्त्रमे ओं के बड्डी महिमा कहल गेलहे । मारकण्डे पुराणमे , जोग ऋषि दत्तात्र्य जी बतैलन हे कि मनुखके ओं रूपी धनुष पर अपन आत्मारूपी बाणके अपन लक्ष्य, ऊ एगो ईश्वर दन्ने साध देवेके चाहि । ओं ब्रह्माण्डमे सदैव गुज्यमान रहहे । आउ जीवो सही अभ्याससे ओकर उच्चारण द्वारा ई ब्रह्माण्डके गूञ्जसे जुड़के असीम आनन्दके प्राप्ति कर सकहे ।
सन्दर्भ
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