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मीर सैयद जाफर अली खान बहादुर ( ईस्वी  १६९१ - ५ फरवरी १७६५) एक कमाण्डर-इन-चीफ या सैन्य जनरल हलै, जे ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनीके बङ्गाल के पहिला आश्रित नवाबके रूपमे शासन कैलकै हल । ओकर शासनकालके ढेर इतिहासकार भारतीय इतिहासमे भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश नियन्त्रणके विस्तारके शुरुआत आउ विभाजन-पूर्व भारतके विशाल क्षेत्र पर अन्ततः ब्रिटिश वर्चस्व के दिशामे एक महत्वपूर्ण कदम मानकै हे । मीर जाफर सिराजुद्दौलाके अधीन बङ्गाली सेनाके कमाण्डरके रूपमे काम कैलकै, किन्तु प्लासीके लड़ाई खन्नि ओकरा धोखा देलकै आउ १७५७ मे ब्रिटिश जीतके बाद मसनद पर चढ़ गेलै । मीर जाफरके ईस्ट इण्डिया कम्पनीसे १७६० तक सैन्य सहायता मिललै, जखनि ऊ विभिन्न ब्रिटिश माङ्गके पूरा करेमे विफल रहलै । १७५८ मे रॉबर्ट क्लाइव पैलकै कि जाफर अपन एजेण्ट खोजा वाजिदके माध्यमसे चिनसुराहमे डच ईस्ट इण्डिया कम्पनीके साथे एगो सन्धि कैलकै हल । डच लाइनके जहाजो हुगली नदीमे देखल गेलै हल । अङ्ग्रेजके साथे जाफरके विवाद अन्ततः चिनसुराहके लड़ाईके जन्म देलकै । ब्रिटिश कम्पनीके अधिकारी हेनरी वैनसिटार्ट प्रस्ताव देलकै कि चूँकि जाफर कठिनाईके सामना करेमे असमर्थ हलै हालाँकि, व्यापार नीति पर विवादके कारण ईस्ट इण्डिया कम्पनी अन्ततः कासिमोके उखाड़ फेककै । कम्पनीके समर्थनसे १७६३ मे जाफरके नवाबके रूपमे बहाल कैल गेलै । हालाँकि मीर कासिम एकरा स्वीकार करेसे इनकार कर देलकै आउ कम्पनीके खिलाफ युद्धमे उतर गेलै । जाफर ५ फरवरी १७६५ के अपन मृत्यु तक शासन कैलकै आउ पश्चिमबङ्गालके मुर्शिदाबादमे जाफरगञ्ज कब्रिस्तानमे दफन है ।

ब्रिटिशके भारतमे उपनिवेश बनावेमे मदद करे आउ मुगल साम्राज्यके अन्ततः पतनमे ओकर भूमिकाके कारण, मीर जाफरके भारतीय उपमहाद्वीपमे एक गद्दारके रूपमे बदनाम कैल जाहै, विशेष रूपसे भारत आउ बाङ्ग्लादेश दुनोमे बङ्गालीके बीच ।