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निरपेक्ष सत्यके स्वानुभूतिहे ज्ञान हे । ई प्रिय-अप्रिय, सुख-दु:ख इत्यादि भावसे निरपेक्ष होवहे । एकर विभाजन विषयके आधार पर होवहे । विषय पाँच होवहे - रूप, रस, गन्ध, शब्द आउ स्पर्श । [1]

ज्ञानके शास्त्रीय परिभाषा

ज्ञान लोगके भौतिक आउ बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलापके उपज, सङ्केतके रूपमे जगत् के वस्तुनिष्ठ गुण आउ सम्बन्ध, प्राकृतिक आउ मानवीय तत्त्वके बारेमे विचारके अभिव्यक्ति हे । ज्ञान दैनन्दिन तथा वैज्ञानिक हो सकहे । वैज्ञानिक ज्ञान आनुभविक आउ सैद्धान्तिक वर्गमे विभक्त होवहे । एकर अतिरिक्त समाजमे ज्ञानके मिथकीय, कलात्मक, धार्मिक आउ अन्य ढेर अनुभूति होवहे । सिद्धान्ततः सामाजिक-ऐतिहासिक अवस्था पर मनुष्यके क्रियाकलापके निर्भरताके प्रकट कैल बिन ज्ञानके सारके न समझल जा सकहे । ज्ञानमे मनुष्यके सामाजिक शक्ति सञ्चित होवहे, निश्चित रूप धारण करहे तथा विषयीकृत होवहे । ई तथ्य मनुष्यके बौद्धिक कार्यकलापके प्रमुखता आउ आत्मनिर्भर स्वरूपके बारेमे आत्मगत-प्रत्ययवादी सिद्धान्तके आधार हे ।[2] स्वाभाविक आउ सहज शब्दमे हमनी ज्ञानके ई प्रकार परिभाषित कर सकहियै "अनुभवके अनुभूतिये ज्ञान कहला हे ।"

सन्दर्भ

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  1. {Cite web|url=https://www.aryanprime.com/2017/08/what-is-knowledge-who-is-enemy-of-wisdom.html%7Ctitle=ज्ञान[मृत कड़ी] क्या है ?, ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु कौन हैं?}
  2. दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-२२६, ISBN ५-0१000९0७-२