चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्त राजवंश के तृतीय किन्तु प्रथम स्वतन्त्र आउ शक्तिशाली नरेश हलै । साधरणतया विद्वान् उनकर राज्यारोहण के तिथि 319-320 ई. निश्चित करहथिन । कुछ लोग ऐसनो मानहथिन कि ऊ ओह तिथि से आरम्भ होवेवाला गुप्त संवत् के स्थापनो कैलकै हल ।
गुप्तके आधिपतय आरम्भमे दक्षिण बिहार आउ उत्तर-पश्चिम बङ्गाल पर हलै । प्रथम चन्द्रगुप्त साम्राज्य के विस्तार कैलकै । वायुपुराण मे प्रयाग तकके गंगा के तटवर्ती प्रदेश, साकेत आउ मगध के गुप्त के 'भोगभूमि' कहकै हे । इ उल्लेख के आधार पर विद्वान् चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्यसीमा के निर्धारण करहथिन, यद्यपि इ बात के कौनो पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नै है । चन्द्रगुप्त प्रथम लिच्छवि कुमारदेवी से विवाह कैलकै हल । सम्भव है, साम्राज्य निर्माणमे चन्द्रगुप्त प्रथम के लिच्छवि सबसे पर्याप्त सहायता मिललै हो । इहो सम्भव है कि लिच्छवि राज्य मिथिला इ विवाह के फलस्वरूप चन्द्रगुप्त के शासन के अन्तर्गत आ गेलै हो। 'कौमुदी महोत्सव' आदि से ज्ञात एवं उनका पर आधृत, चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्यारोहण आदि से सम्बद्ध इतिहास निर्धारण सर्वथा असंगत है । उ सम्भवतः एक प्रकार के स्वर्णमुद्रा के प्रचलन कैलकै, आउ महाराजाधिराज के विरुद धारण कैलकै । प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर कह सकहियै कि चन्द्रगुप्त प्रथम समुद्रगुप्त के अपन उत्तराधिकारी नियुक्त कैलकै आउ सम्भवतः 380 ई. के लगभग उनकर सुदीर्घ शासन का अन्त होलै । गुप्त संवत् के प्रारम्भ 319 ईस्विए मे होलै हल । इकर पुष्टि अल्वरूनी के इ कथनो मे होवहै कि गुप्त संवत् आउ शक संवत् के बीच 241 वर्ष के अन्तर हलै । चन्द्रगुप्त प्रथम लगभग 319 ईस्वी से 350 ईस्वी तक शासन कैलकै । उ अपन जीवन-काले मे अपन सुयोग्य पुत्र समुद्रगुप्त के अपन उत्तराधिकारी निर्वाचित कर देलकै ।
नि:सन्देह ऊ अपन वंश के प्रथम महान् शासक हलो । कुछ विद्वान का त हियाँ तक विचार है कि ऊ अपन वंश के स्वतन्त्रता के जन्मदाता हलै आउ ओकरे काल मे गुप्त लोग सामन्त स्थिति से सार्वभौम स्थिति मे ऐलै । वास्तविकता जौनो होवे, हमनी चन्द्रगुप्त प्रथम के गुप्त साम्राज्य के वास्तविक संस्थापक मान सकहियै ।
सन्दर्भ
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